Thursday, September 27, 2018

首届“全球中国对话”活动报导

首届“全球中国对话”于2014年12月17日在伦敦伦敦金融城心脏地带的资本俱乐部( )举行,全球中国比较研究会会长常向群教授主持了这一活动(左图)。首届全球中国对话的主题为:中国现代化进程的经验教训与其它发展中国家和地区之比较。该活动是由全球中国比较研究会(  )和全球青年企业家协会(  )联合主办,并得到国内外多家单位的赞助,来自学术界、智库和企业的40余人应邀参加了开坛仪式(右图)。是(中图自左至右): 伦敦政治经济学院人类学教授、著名中国专家王斯福教授,英国社科院院士、德国波恩大学高研院院士马丁•阿尔布劳教授,欧洲改革中心 主任查尔斯•格兰特先生,中国东北师范大学马克思主义学部副部长郭凤志教授,中国驻英国大使馆 文化处公使衔参赞项晓炜先生,英籍华人作家、记者,慈善机构“母爱桥”创办者薛欣然女士,以及青年企业家协会 会长,英国 集团总裁郝斐先生。办中英文化交流年。根据双方协议,上半年英国在中国举办文化季,下半年中国在英国举办文化季,其活动的特点是创造性。英国学术界希望我们能够深化中英两国之间的文化交流,鼓励对共同关心的问题的自由交流提供平台。今年是中国中国近代启蒙思想家严复诞辰160周年,他不仅将许多英国社会科学著作及观念介绍到中国,还发起了现代化的运动,因此,回顾一百多年来中国现代化曲折历程,并将中国现代化运动和世界各国的现代化运动做一比较,将可能成为世界各国政府、学术界和各界共同关心的问题。目前我们正在和很多学术领域的有影响力学者合作,我们希望明年10月能够在伦敦举办以中国与全球现代化问题比较研究为主题的论坛。着学者专家们分别从全球、欧洲、中国、民间和企业家视野谈了他们的看法。马丁·阿尔布劳教授(左一)首先从欧洲现代化概念的起源加以回应,他说,历史上“现代”的概念发生了很多变化,到18世纪变得更重要了,当时东西方关系已经进入一个关键性的阶段:传教士将西方科学介绍到中国,并而将中国伦理学等介绍到西方国家。其实,“现代化”与资本主义无关,“现代的”的意思就是“合理的”、“理性的”,是人类寻找共同的人道 ),它是我们当下全球治理的基础。从全球治理的角度上看,中国是最年轻的贡献者,中华文明正在摆脱西方的阴影,一起加入到人类的文明进程之中,共建一个普遍的全球化人类社会。查尔斯·格兰特先生 (左二)首先坦诚地指出,虽然全球治理是一个好主意,即世界各国间的关系是按照谈判和法规规矩处理的,但是目前其况状并不好,他列举了世界贸易组织、20国集团、安理会、北约等国际组织,认为他们都是“清谈俱乐部”。他说,他曾经写过一本书,对俄罗斯和中国在全球治理作了比较,注意到中国想遵守全球治理的经济机构,例如,它很早加入世界贸易组织,也是对全球金融体系进行监管的金融稳定委员会的参与成员,并对全球安全治理采取谨慎的态度。郭凤志教授(中)认为,中国的现代化对内要实现人民生活水平不断改善的目标,对外要解决在世界比较中我们相对落后问题。在经济全球化条件下中国的现代化己经置于全球化背景中,一切发展问题只能在全球背景下去思考,发展能力和发展质量也只能在世界比较中得到评价。薛欣然女士(右二)通过对她在英国BBC和《卫报》以及创办“母爱桥”所扮演的作家、记者和志愿者的角色,以及在英国和世界许多国家的体验,就中国与英与世界国家的差异提出了三个问题:(1)“先理解再思考,还是先思考再理解”;(2)“人类历史及其秩序的根基和型塑是家庭还是宗教?”(3) “全球化还是英语国家化?“ 她从家庭到社会举例说明每个国家和社会有自己的优秀的价值观,并借此机会发文,世界能够从中国学到什么,学到多少?郝斐先生(右一)也讲了三点,他首先倒过来说作为华人企业家,他向英国企业家学到了企业的社会责任的精神,不是简单的纳税、雇员等,而是其组成和内涵,认为这是企业吸引人才、提高凝聚力、增加品牌认可和确保可持续性发展的关键因素之一;然后,他通过中国与欧洲的互联网企业发展状况的比较,指出中国在这一领域远远优于欧洲的原因在于中国人有努力改变自己生活方式的活力;最后,他通过中国与英国的语言习惯和教育体制的比较指出差异的存在,提出,”让我们在一起,求同存异“。

Tuesday, September 11, 2018

大量哺乳动物濒临灭绝危险

路透社》报道,世界自然保护联盟的统计调查显示,狩猎活动和栖息地遭破坏导致世界上 四分之一的哺乳动物濒临灭绝的威胁。
此调查为该联盟发布的权威性"红色濒危物种"名单报告中的一部分,是至今为止最全面的有关研究。该报告显示,科学分析的 个物种中,1,139濒临灭绝的危险。
一些最濒危的陆地哺乳动物在亚洲,例如深受森林砍伐影响的红毛猩猩。这一地区近80%的灵长类动物的生存受到威胁。
这一研究还表明,包括欧洲野牛和北美黑足鼬在内的5%的物种由于保护措施的实施数量有所回升。
据《路透社》报道,有研究指出,上海的众多高层建筑可能会造成其沼泽地面下沉得更快,使沿海城市更容易受到海平面上升的影响。
上海位于亚洲最长河流长江入海口附近的低洼冲积平原上。为满足其经济快速发展和工业化进程的需求,地下水的过度抽取已导致该城开始下陷。目前,科学家们说,极地冰盖融化造成的海平面上升,加上摩天大楼的影响,上海面临的地陷危险变得更加严重。
上海同济大学海洋地质学教授兼中国科学院院士的汪品先在路透社全球环境首脑会议上说,"海平面上升是全球变暖带来的世界性影响但是,地面沉降使上海和天津成为中国受到最大威胁的两个沿海城市。"
另有一些科学家则认为高层建筑仅导致轻微的地面下沉,而建筑技术创新可以减轻下沉幅度。

据《路透社》报道,有研究指出,上海的众多高层建筑可能会造成其沼泽地面下沉得更快,使沿海城市更容易受到海平面上升的影响。
上海位于亚洲最长河流长江入海口附近的低洼冲积平原上。为满足其经济快速发展和工业化进程的需求,地下水的过度抽取已导致该城开始下陷。目前,科学家们说,极地冰盖融化造成的海平面上升,加上摩天大楼的影响,上海面临的地陷危险变得更加严重。
上海同济大学海洋地质学教授兼中国科学院院士的汪品先在路透社全球环境首脑会议上说,"海平面上升是全球变暖带来的世界性影响。但是,地面沉降使上海和天津成为中国受到最大威胁的两个沿海城市。"
另有一些科学家则认为高层建筑仅导致轻微的地面下沉,而建筑技术创新可以减轻下沉幅度。
据《路透社》报道, 中国气候变化谈判特别代表于庆泰大使警告说,将在哥本哈根召开的后《京都议定书》气候变化谈判可能因为发达国家未能履行诺言而失败。
于庆泰说,"对于哥本哈根谈判的进程,我个人看法非常悲观,事态发展十分艰难,进展十分缓慢。" 他解释说,在初步谈判中,发达国家未能按照承诺对发展中国家提供科技和金融支持。
中国日益增加的温室气体排放量即将超过美国,促使发达国家和有关专家要求中国为排放设强制性的上限目标。2009年12月在丹麦哥本哈根召开的会议将就《京都议定书》的后续协议展开讨论。
《京都议定书》没有为中国和其他发展中国家设排放上限

Monday, September 3, 2018

चीन से यारी श्रीलंका के लिए क्यों बन रही दुश्वारी

5 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे महिंदा राजपक्षे को देश में 30 साल से जारी गृह युद्ध को ख़त्म करने का श्रेय तो दिया ही जाता है, लेकिन श्रीलंका क़र्ज़ के बोझ तले जिस क़दर दबा है उसका श्रेय भी राजपक्षे को ही दिया जाता है.
राजपक्षे के बारे में कहा जाता है कि चीन के लिए उनका ज़्यादातर मामलों में एक ही जवाब होता था- हां.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का कहना है, ''चीनी क़र्ज़ और महत्वाकांक्षी पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए महिंदा राजपक्षे का जवाब हमेशा 'हां' रहा. हम्बनटोटा पोर्ट पर हुई स्टडी का कहना था कि यह बनने के बाद भी काम नहीं कर पाएगा, लेकिन राजपक्षे का जवाब चीन के लिए 'हां' रहा. भारत से श्रीलंका हमेशा क़र्ज़ लेता रहा है और जब भारत ने इस प्रोजेक्ट पर काम करने से इनकार कर दिया तब भी राजपक्षे ने चीन के लिए 'हां' कहा. राजपक्षे के कार्यकाल में चीनी क़र्ज़ बेशुमार बढ़ा है.''
एनवाईटी की रिपोर्ट के अनुसार, ''हम्बनटोटा पोर्ट का निर्माण चीन की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी हार्बर इंजीनियरिंग ने किया है. यह पोर्ट पूर्वानुमान के मुताबिक़ फ़ेल ही रहा है. इस पोर्ट के बगल का समुद्री मार्ग दुनिया का सबसे व्यस्ततम मार्ग है और यहां से दसियों हज़ार जहाज़ गुजरते हैं, जबकि 2012 में हम्बनटोटा से महज़ 34 जहाज़ गुज़रे और आख़िरकार पोर्ट भी चीन का ही हुआ.''
2015 में तो राजपक्षे श्रीलंका की सत्ता से विदा हो गए, लेकिन नई सरकार उनके लिए कर्ज़ को चुकाने की मुश्किलों से जूझ रही है. क़र्ज़ नहीं चुकाने के कारण ही चीन से महीनों बातचीत के बाद श्रीलंका को पोर्ट के साथ 15000 एकड़ ज़मीन भी उसे सौंपनी पड़ी थी. रीलंका ने चीन को जो इलाक़ा सौंपा है वो भारत से महज़ 100 मील की दूरी पर है. भारत के लिए इसे सामरिक रूप से ख़तरा बताया जा रहा है.
श्रीलंका एक बार फिर चीन से कर्ज़ लेने जा रहा है. यह क़र्ज़ 2018 की आख़िरी तिमाही में श्रीलंका को मिलेगा. 2019 की शुरुआत से ही श्रीलंका को क़र्ज़ का भुगतान करना है और ये उसी की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है.
बिज़नेस टाइम्स के अनुसार 2019 से 2022 तक हर साल श्रीलंका को चार अरब डॉलर विदेशी क़र्ज़ चुकाने हैं. संडे टाइम्स के अनुसार श्रीलंका पर 2017 में कुल विदेशी क़र्ज़ 55 अरब डॉलर हो गया है.
निक्केई एशियन रिव्यू की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका चीन से 1.25 अरब डॉलर का नया क़र्ज़ लेकर ख़ुद को उसके हवाले ही कर रहा है. दक्षिण एशियाई देशों में चीन पहले से ही सबसे बड़ा क़र्ज़दाता है. के अनुसार श्रीलंका का केंद्रीय बैंक चीन के समकक्ष पीपल्स बैंक ऑफ़ चाइना से 25 करोड़ डॉलर की क़ीमत का पांडा बॉण्ड (ऐसा बॉण्ड जो सीधे तौर पर चीन का केंद्रीय बैंक जारी नहीं करता, परन्तु निगरानी रखता है) जारी करवाने में लगा है.
इसके अलावा श्रीलंका पहले ही चीन के व्यावसायिक बैंकों से एक अरब डॉलर का क़र्ज़ ले चुका है. श्रीलंका के केंद्रीय बैंक का कहना है कि पश्चिम के अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़दाताओं की तुलना में चीनी लोन ज़्यादा सुलभ है. निक्केई एशियन रिव्यू के अनुसार इसकी पहली किस्त 50 करोड़ डॉलर इस हफ़्ते के आख़िर तक आ जाएगी.
श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय सॉवरन बॉण्ड, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य विकल्पों की तुलना में चीन से क़र्ज़ लेना ज़्यादा रास आ रहा है. दूसरी तरफ़ दुनिया भर के विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में अभी 8.5 अरब डॉलर की रक़म ही बची है और उसे सोच-समझकर क़दम उठाना चाहिए. ज़ाहिर है श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में जो रक़म बची है वो उसकी ज़रूरतों (आयात भुगतान और अन्य ज़रूरतें ) पूरी तरह से अपर्याप्त है. माचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार 2019 से 2023 के बीच श्रीलंका के 17 अरब डॉलर के विदेशी क़र्ज़ की अवधि पूरी हो जाएगी और उसे किसी भी सूरत में इसे चुकाना होगा. ये क़र्ज़ चीन, जापान, भारत और विश्व बैंक समेत एशियन डिवेलपमेंट बैंक के हैं.
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के चेयरमैन इंद्रजीत कुमारस्वामी का कहना है कि उन्होंने डॉलर के प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय बॉण्डों के सहारे पैसे जुटाने की पारंपरिक राह को नहीं चुना है. इंद्रजीत का कहना है कि यह फ़ैसला विदेशी क़र्ज़ को संचालित करने का अच्छा तरीक़ा है.
कुमारस्वामी ने निक्केई एशियन रिव्यू से कहा, ''श्रीलंका को अगले साल से चार अरब डॉलर से कुछ ज़्यादा का क़र्ज़ चुकाना है. हमारा क़र्ज़ चुनौतीपूर्ण है पर हम मैनेज कर लेंगे.''
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 87 अरब डॉलर की है और चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.2 फ़ीसदी है. कुमारस्वामी का कहना है कि श्रीलंका पर क़र्ज़ उसकी जीडीपी का 77 फ़ीसदी है. रीलंका का यह अनुपात पड़ोसी देश भारत, पाकिस्तान, मलेशिया और थाईलैंड से ज़्यादा है. श्रीलंका पर कुल 55 अरब डॉलर के विदेशी क़र्ज़ में चीन का 10 फ़ीसदी, जापान का 12 फ़ीसदी, एशियन डिवेलपमेंट बैंक का 14 फ़ीसदी और विश्व बैंक का 11 फ़ीसदी है.
श्रीलंका पर बढ़ते क़र्ज़ को लेकर कहा जा रहा है वो अपने सिर पर बदनामी ले रहा है. कई विश्लेषकों का मानना है कि श्रीलंका चीनी डिज़ाइन के क़र्ज़ के जाल में फँसता जा रहा है.
इस बात की आशंका तब और बढ़ गई जब श्रीलंका क़र्ज़ चुकाने में नाकाम हो गया और उसे अपना हम्बनटोटा पोर्ट चीन को सौ साल के पट्टे पर सौंपना पड़ा.
महिंदा राजपक्षे को ही चीन के लिए दरवाज़ा खोलने का ज़िम्मेदार माना जाता है. राजपक्षे 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे थे.
उनके कार्यकाल के आख़िरी साल में चीन ने हम्बनटोटा पोर्ट, एक नया एयरपोर्ट, एक कोल पावर प्लांट और सड़क के निर्माण में 4.8 अरब डॉलर का निवेश किया था. 2016 के आते-आते यह क़र्ज़ 6 अरब डॉलर का हो गया.
राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना की गठबंधन सरकार में श्रीलंका पर क़र्ज़ का बोझ और बढ़ा है. सिरीसेना चार सालों से सत्ता में हैं और विदेशी निवेश न के बराबर आया है. 2017 में श्रीलंका में केवल 1.7 अरब डॉलर का ही विदेश निवेश आया.
इसकी एक वजह यह है कि यहां की सरकार व्यापार की सुगमता में अपनी रैंकिंग सुधारने में नाकाम रही है. श्रीलंका सुलभ व्यापार के दृष्टिकोण से दुनिया भर में 111वें नंबर पर है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का कहना है कि चीन क़र्ज़ को रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार वो उन देशों में अपने आर्थिक हितों को क़र्ज़ देकर साध रहा है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है, ''चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर आरोप लग रहे हैं कि वो अपनी महत्वाकांक्षी योजना 'वन बेल्ट वन रोड' में आसपास के देशों को क़र्ज़ का लालच देकर शामिल कर रहे हैं.''
चीन और श्रीलंका के बीच संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं. चीनी क्रांति के बाद माओ की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने में श्रीलंका अगली पंक्ति के देशों में रहा है.
श्रीलंका में राजपक्षे सरकार ने तमिल विद्रोहियों के ख़िलाफ़ निर्णायक जंग छेड़ी तो चीन उसके लिए और ज़रूरी देश के तौर पर उभरा.
इस जंग में श्रीलंका जब मानवाधिकारों को लेकर विश्व में अलग-थलग पड़ा तो चीन ने कुछ अलग ही रुख़ अपनाया.
चीन ने श्रीलंका को ख़ूब आर्थिक मदद की. चीन ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के असर को कम करने के लिए सैन्य, सियासी और आर्थिक मदद देना जारी रखा.
तमिल अलगाववादियों से 2009 में युद्ध ख़त्म होने के बाद श्रीलंका की सत्ता में राजपक्षे और उनके परिवार का वर्चस्व बढ़ता गया. राजपक्षे के तीन भाइयों का श्रीलंका के सभी मंत्रालयों में ख़ासा प्रभाव रहा. चीन की सरकार और राजपक्षे के बीच इसी दौरान और क़रीबी आई.
भारत के पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा है, ''हम्बनटोटा के लिए श्रीलंका ने पहले भारत और भारतीय कंपनियों से संपर्क किया था. हमने इस पर काम करने से इसलिए इनकार किया था क्योंकि यह आर्थिक रूप बिल्कुल बेकार था और बनने के बाद भी बेकार ही है.''

Sunday, September 2, 2018

की चौंकाने वाली रिपोर्ट, बताया- दुनिया की सबसे संकटग्रस्त नदी

मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार 2014 में कई बड़े वादों के साथ सत्ता में आई, जिसमें से एक था गंगा की सफाई का वादा. लेकिन अभी भी गंगा का हाल वैसा ही लगता है. देश में 2,071 किलोमीटर क्षेत्र में बहने वाली नदी गंगा के बारे में वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) का कहना है कि गंगा विश्व की सबसे अधिक संकटग्रस्त नदियों में से एक है क्योंकि लगभग सभी दूसरी भारतीय नदियों की तरह गंगा में लगातार पहले बाढ़ और फिर सूखे की स्थिति पैदा हो रही है.
उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक गंगा विशाल भू-भाग को सींचती है. गंगा भारत में 2,071 किमी और उसके बाद बांग्लादेश में अपनी सहायक नदियों के साथ 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है.
गंगा नदी के रास्ते में पड़ने वाले राज्यों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियों में यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं जबकि दक्षिण के पठार से आकर मिलने वाली प्रमुख नदियों में चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि शामिल हैं. यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है, जो हिमालय की बन्दरपूंछ चोटी के यमुनोत्री हिमखण्ड से निकलती है.
गंगा उत्तराखंड में 110 किमी, उत्तर प्रदेश में 1,450 किलोमीटर, बिहार में 445 किमी और पश्चिम बंगाल में 520 किमी का सफर तय करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है.
गंगा का आध्यात्मिक महत्व...
हमारे ग्रंथों में गंगा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है. ग्रंथों के मुताबिक, गंगा का अर्थ है, बहना. गंगा भारत की पहचान है और देश के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों को पिरोने वाली एक मूलभूत डोर भी है.
देश के सबसे पवित्र स्थानों में शुमार ऋषिकेश, हरिद्वार, प्रयाग और काशी, गंगा के तट पर स्थित हैं. इसके अलावा केदारनाथ, बद्रीनाथ और गोमुख गंगा और उसकी उपनदियों के किनारे स्थित तीर्थ स्थानों में से एक हैं. जिन चार स्थानों पर कुंभ मेला लगता है, उनमें से दो शहर हरिद्वार और प्रयाग गंगा तट पर स्थित हैं.
कहां फैल रही गंदगी...
समाचार एजेंसी  द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, जहां तक प्रदूषण की बात है तो गंगा ऋषिकेश से ही प्रदूषित हो रही है. गंगा किनारे लगातार बसायी जा रही बस्तियों चन्द्रभागा, मायाकुंड, शीशम झाड़ी में शौचालय तक नहीं हैं. इसलिए यह गंदगी भी गंगा में मिल रही है, कानपुर की ओर 400 किमी उलटा जाने पर गंगा की दशा सबसे दयनीय दिखती है. इस शहर के साथ गंगा का गतिशील संबंध अब बमुश्किल ही रह गया है.
ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारखाने लगे हैं, जिसके कारण गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है.
भारत में नदियों का ग्रंथों, धार्मिक कथाओं में विशेष स्थान रहा है. आधुनिक भारत में नदियों को उतना ही महत्व दिया जाता है और लाखों श्रद्धालु त्योहारों पर इन पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं लेकिन वर्तमान हालात में नदियों के घटते जलस्तर और प्रदूषण ने पर्यावरणविदों और चिंतकों के माथे पर लकीरें ला दी हैं.