Thursday, May 30, 2019

السودان: هل يستعين المجلس العسكري بالقاهرة والرياض لمواجهة العصيان المدني؟

في الوقت الذي أعلنت فيه قوى الحرية والتغيير في السودان، والتي تقود حركة الاحتجاجات، عن إضراب عام في البلاد ، يومي الثلاثاء والأربعاء المقبلين، كان رئيس المجلس العسكري السوداني الفريق أول عبد الفتاح البرهان، يلتقي الرئيس المصري عبد الفتاح السيسي في القاهرة، في أول زيارة خارجية يقوم بها منذ توليه منصبه، عقب عزل الرئيس السابق عمر حسن البشير في نيسان/ ابريل الماضي.
وجاءت زيارة البرهان للقاهرة، بعد ساعات فقط من زيارة قام بها نائب رئيس المجلس العسكري، قائد قوات الدعم السريع، محمد حمدان دقلو "حميدتي" إلى السعودية، التقى خلالها ولي العهد السعودي محمد بن سلمان، حيث أكد على بقاء القوات السودانية المشاركة في الحرب التي تقودها الرياض وأبوظبي في اليمن.
وقد أثارت الزيارتان المتتاليتان المزيد من التعليقات، وكذلك قلق قوى الحرية والتغيير في السودان ، واعتبر كثير من السودانيين، أن الزيارتين تؤكدان ما يقال عن سعي القاهرة والرياض، للإجهاز على الثورة السودانية وتمكين المجلس العسكري من البقاء في حكم البلاد.
واعتبرت قوى الحرية والتغيير في السودان، زيارتي المجلس العسكري لكل من الرياض والقاهرة مؤشرا، على أن المجلس يتمدد في صلاحياته وسلطاته، مشيرة إلى أن هذه الزيارات تنذر بفتح الباب للتدخلات الخارجية في الشؤون الداخلية السودانية، والتي تزيد من مخاوف المحتجين السودانيين على مكاسبهم الثورية.
وبعد موجة استنكار من قبل قوى الحرية والتغيير، لزيارة حميدتي إلى السعودية قال بيان للمجلس العسكري، إن الغرض من زيارة حميدتي هو "تقديم الشكر للمملكة لما قدّمته من دعم اقتصادي يؤمن متطلبات الحياة المعيشية للشعب السوداني، وهو ما أعلن عنه في الفترة السابقة، فضلاً عن دعمها السياسي للمجلس للمساهمة في الوصول إلى حل سريع للمشكلات".
وتواجه كل من السعودية ومصر بجانب الإمارات، اتهامات من قبل الثوار السودانيين، بأنها تدعم ما يسمونها بالثورة المضادة في البلاد، وقد أودعت الرياض الأسبوع الماضي 250 مليون دولار في المصرف المركزي السوداني، في إطار حزمة مساعدات تعهّدت بها وحليفتها أبو ظبي لصالح السودان ، وأعلن البلدان في 21 نيسان/أبريل الماضي، تقديم دعم مالي قيمته ثلاثة مليارات دولار للخرطوم، فيما يراه مراقبون سودانيين دعما للمجلس العسكري للبقاء في الحكم فترةً أطول.
أما القاهرة من جانبها فقد شهدت اجتماعا في وقت سابق، لقادة الاتحاد الأفريقي، انتهى إلى تمديد المهلة الممنوحة للمجلس العسكري لتسليم السلطة للمدنيين، وهو ما أعقبته مظاهرات سودانية تطالب السيسي، الذي ترأس بلاده قمة الاتحاد الأفريقي في دورتها الحالية، بعدم التدخل في الشؤون الداخلية للجارة الجنوبية لمصر.
ويرى مراقبون أنه وفي الوقت الذي تنطلق فيه كل من السعودية والإمارات، في دعمهما للمجلس العسكري السوداني، من حاجتهما للجنود السودانيين المشاركين في الحرب التي تقودها السعودية في اليمن، فإن مصر تنطلق من مخاوف، من نجاح تجربة نقل السلطة إلى مدنيين في السودان، واحتمال انتقال العدوى إليها.
على الجانب الآخر وبينما اعتبر العديد من قادة الاحتجاجات في السودان، أن زيارتي البرهان وحميدتي لكل من القاهرة والخرطوم، تأتى في إطار السعي للتغلب على دعوات الإضراب العام هذا الأسبوع، أكد هؤلاء أيضا على أن حركة الاحتجاج ستتواصل في السودان، مهما تمت الاستعانة بقوى إقليمية لإنهاء الثورة، وأن قوى الحرية والتغيير لديها العديد من الخيارات التي لم تجربها بعد.
برأيكم
هل يستعين المجلس العسكري السوداني بالقاهرة والرياض لمواجهة العصيان المدني؟
ولماذا جاءت زيارتي المجلس العسكري للرياض والقاهرة في هذا الوقت؟
إذا كنتم في السودان كيف تنظرون للدور الذي تقوم به كل من القاهرة والرياض تجاه الثورة السودانية؟
هل تنجح دعوات العصيان المدني في السودان في مواجهة الدعم الخارجي للمجلس العسكري؟
ولماذا تسعى برأيكم كل من الرياض والقاهرة لدعم المجلس العسكري السوداني؟

Monday, May 27, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

ईरान के विदेश मंत्री जव्वाद ज़रीफ़ ने पिछले सप्ताह पाकिस्तान का दौरा किया था.
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार जव्वाद ज़रीफ़ ने अपनी पाकिस्तानी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री इमरान ख़ान, सेना प्रमुख जनरल जावेद क़मर बाजवा और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी से मुलाक़ात की.
अख़बार के अनुसार पाकिस्तानी सेना ने एक बयान जारी कर कहा कि सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने ईरानी विदेश मंत्री से कहा कि जंग किसी के भी हित में नहीं है.
ईरानी विदेश मंत्री ने ऐसे समय में पाकिस्तान का दौरा किया है जब पूरे खाड़ी में ईरान और अमरीका के बीच रिश्ते बहुत ही तनावपूर्ण हैं और जंग जैसे हालात लग रहे हैं.
अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा, ''इस क्षेत्र में किसी तरह का तनाव किसी के हित में नहीं है. पाकिस्तान किसी भी समस्या को राजनयिक तौर पर हल करने का पक्षधर है.''
इस मौक़े पर ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए पाकिस्तान के प्रयासों की वो सराहना करते हैं.
ब्रितानी प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे के इस्तीफ़े की घोषणा के बाद ब्रिटेन में सियासी हलचल बढ़ गई है. अब मे के उत्तराधिकारी यानी ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री के लिए संभावित नामों पर चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी है.
फ़िलहाल 12 से ज़्यादा ऐसे सांसद हैं जिनके प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है.
जिन पांच नामों के रेस में शामिल होने की पुष्टि हो चुकी है वो हैं, विदेश मंत्री जेरेमी हंट, पूर्व विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन, स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनॉक, रोरी स्टुअर्ट और एस्टर मैक्वे.
मैट हैनॉक ने कहा है कि टेरीज़ा मे के उत्तराधिकारी को ब्रेग्ज़िट सौदे पर सहमति बनाने के लिए ज़्यादा 'ईमानदार' होना पड़ेगा.
हैनॉक ने अपनी उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए कहा कि वो तुरंत आम चुनाव कराए जाने के पक्ष में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव कराए जाने से ब्रेग्ज़िट मसले का हल नहीं निकलेगा और ये देश के लिए 'भयावह' होगा.
वहीं रोरी स्टुअर्ट ने कहा है कि वो बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में काम नहीं करेंगे क्योंकि ब्रेग्ज़िट को लेकर उनके रवैये से वो सहमत नहीं हैं
स्टुअर्ट ने कहा कि सभी नेताओं और सांसदों को ब्रेग्ज़िट मामले पर सच बोलने की ज़रूरत है.
स्टुअर्ट ने बीबीसी से कहा, "मुझे ये कहते हुए बहुत दुख हो रहा है लेकिन मैं उनकी (बोरिस जॉनसन की) अगुवाई में काम नहीं कर सकता. बोरिस में कई ख़ूबियां हैं और मैंने उनसे कुछ दिन पहले ही बात की थी. तब उन्होंने कहा था कि वो बिना किसी डील के ईयू से बाहर नहीं निकलेंगे लेकिन अब वो ठीक इसका उल्टा बोल रहे हैं. कल उन्होंने जो कुछ कहा, वो हमारे देश और हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा."
बोरिस जॉनसन वही शख़्स हैं जिन्होंने साल 2016 के जनमत संग्रह के दौरान- 'लीव कैंपेन' यानी यूरोपीय संघ से अलग होने के अभियान का नेतृत्व किया था.
अब जॉनसन ने कहा है कि अगर सत्ता उनके हाथों में आई तो ब्रिटेन अक्टूबर में किसी समझौते के साथ या समझौते के बिना भी यूरोपीय संघ से बाहर हो जाएगा.
वहीं यूरोपियन कमीशन के अध्यक्ष ज्यां क्लॉड यंकर ने स्पष्ट कर दिया है कि ब्रेग्ज़िट की प्रक्रिया पूरी करना यूरोपीय संघ की प्राथमिकता है.
टेरीजा मे ने इस्तीफ़े का ऐलान शुक्रवार को ही कर दिया लेकिन वो पद 7 जून को छोड़ेंगी. नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक वो पद पर बनी रहेंगी.
उन्होंने कहा कि उन्होंने 2016 में हुए जनमतसंग्रह के परिणाम का सम्मान करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश की लेकिन ब्रेग्ज़िट में क़ामयाब न हो पाने का उन्हें 'गहरा दुख' रहेगा.
मे ने ये भी कहा कि यह देश के हित में होगा कि अब नया प्रधानमंत्री ब्रेग्जिट सौदे के लिए समर्थन के प्रयासों को जारी रखे.
वहीं, प्रमुख विपक्षी लेबर पार्टी के जेरेमी कॉर्बिन समेत कई नेताओं ने मांग की है कि टेरीजा मे के पद छोड़ते ही आम चुनावों का ऐलान होना चाहिए.