Friday, August 31, 2018

वक़्त पर पीरियड्स के लिए क्या खाएं क्या न खाएं

महिलाओं के शरीर में हार्मोनल परिवर्तन का उनके खान-पान से सीधा संबंध होता है. एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं के आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज़्यादा है तो पीरियड्स वक़्त से पहले आ सकता है.
जो महिलाएं ज़्यादा पास्ता और चावल खाती हैं, उन्हें एक से डेढ़ साल पहले पीरियड्स आना शुरू हो जाता है.
हालांकि यूनिवर्सटी ऑफ लीड्स ने ब्रिटेन की 914 महिलाओं पर एक स्टडी की थी और उसमें यह बात सामने आई थी कि जो महिलाएं मछली, मटर और बीन्स का सेवन ज़्यादा करती हैं उनके मासिक धर्म में सामान्य रूप से देरी होती है.
हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि पीरियड्स का वक़्त से पहले या बाद में आना केवल खान-पान पर ही नहीं, बल्कि कई चीज़ों पर निर्भर करता है. इ
यह स्टडी जर्नल ऑफ एपिडिमीलॉजी एंड कम्युनिटी हेल्थ में छपी है. इस स्टडी में महिलाओं से उनके खान-पान के बारे में सवाल पूछे गए हैं. जो महिलाएं फलीदार सब्ज़ियां ज़्यादा खाती थीं, उनके पीरियड्स में देरी देखी गई.
ये देरी एक से डेढ़ साल के बीच की थी. दूसरी तरफ़ जिन महिलाओं ने ज़्यादा कार्बोहाइट्रेड वाला आहार लिया, उन्हें एक से डेढ़ साल पहले ही पीरियड्स का सामना करना पड़ा.
शोधकर्ताओं ने खान-पान के अलावा दूसरे प्रभावों का भी ज़िक्र किया है. इसमें महिलाओं का वजन, प्रजनन क्षमता और एचआरटी हार्मोन अहम हैं.
हालांकि इन्हें अनुवांशिक कारण माने जाते हैं और इसका पीरियड्स पर सीधा असर होता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि फलीदार सब्ज़ियां एंटिऑक्सिडेंट होती हैं और इससे पीरियड्स में देरी होती है.
ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है और ये केवल मछली के तेल में होता है. इससे भी शरीर में एंटिऑक्सिडेंट बढ़ता है. दूसरी तरफ़ कार्बोहाइड्रेट इंसुलिन प्रतिरोधक के ख़तरे को बढ़ाता है.
इससे सेक्स हार्मोन भी प्रभावित होता है, एस्ट्रोजन बढ़ता है. ऐसी स्थिति में पीरियड्स का चक्र प्रभावित होता है और वक़्त से पहले आने की संभावना रहती है.
इस स्टडी के शोधकर्ता जेनेट कैड का कहना है कि पीरियड्स की उम्र से महिलाओं की सेहत सीधी जुड़ी होती है.
जिन महिलाओं को पीरियड्स वक़्त से पहले होता है, उनमें दिल और हड्डी की बीमारी की आशंका बनी रहती है. दूसरी तरफ़ जिन महिलाओं को पीरियड्स देरी से आता है, उनमें स्तन और गर्भाशय के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है.
गोभी, हरी साग, हल्दी, नारियल के तेल जैसी खाद्य सामग्रियों को महिलाओं के अंडाणु की गुणवत्ता से जोड़ा जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इन्हें खाने से अंडाणु की गुणवत्ता सुधर जाती है.
अंडाणु की गुणवत्ता का सीधा संबंध अनुवांशिकी होता है.
समें जीन का भी प्रभाव होता है.
आप अपने घर में बच्चों और सिगरेट दोनों से एक साथ प्यार नहीं कर सकते हैं. अगर भला चाहते हैं तो दोनों में से किसी एक को छोड़ना पड़ेगा.
अमरीका के एक शोध में पता चला है कि अगर बच्चे सिगरेट पीने की लत के शिकार मां-बाप के साथ बड़े होते हैं तो उन्हें फेफड़े की जानलेवा बीमारी हो सकती है.
ये बीमारी पैसिव स्मोकिंग की वजह से उन्हें हो सकती है. पैसिव स्मोकिंग यानी जब एक शख़्स सिगरेट पी रहा होता है तो उसके आसपास के लोगों को अनायास ही धुआं लेना पड़ता है.
शोधकार्ताओं का कहना है कि सिगरेट न पीने वाले प्रति एक लाख वयस्कों की मौत में सात और मौतें जुड़ जाती हैं जो पैसिव स्मोकिंग के कारण होती हैं.
अमरीका कैंसर सोसाइटी के अध्ययन में 70,900 सिगरेट न पीने वाले पुरुष और महिलाओं को शामिल किया गया था जिनके मां-बाप सिगरेट पीते थे.
विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर तरीक़ा यह होगा कि मां-बाप अपने बच्चों के लिए सिगरेट छोड़ दें.
अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे स्मोकिंग की लत के शिकार मां-बाप के साथ बड़े होते हैं उन्हें दूसरी तरह की भी बीमारियां हो सकती हैं.
बच्चा अगर सप्ताह में 10 या उससे ज़्यादा घंटे सिगरेट के धुएं के साए में होता है तो उसे दिल की बीमारी होने की आशंका 27 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है. वहीं मस्तिष्क आघात की आशंका 23 फ़ीसदी और फेफड़े की जानलेवा बीमारी होने का जोख़िम 42 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है.
यह तुलना उन बच्चों से की गई है जो सिगरेट नहीं पीने वाले मां-बाप के साथ रहते हैं. इस अध्ययन को अमरीकन जर्नल ऑफ़ प्रिवेंटिव मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है.
अध्ययन में शामिल 70,900 लोगों से वैसे वक़्त का हिसाब-किताब लिया गया जब वो अपने मां-बाप के सिगरेट के धुएं के बीच थे. अगले 22 सालों तक उनके स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया.
स्मोकिंग के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाली हेज़ल चेसमैन ने कहा, "यह नया अध्ययन अभियान में शामिल किया गया है और बताता है कि बच्चों की ख़ातिर लोगों को घर के बाहर स्मोकिंग करना चाहिए. अच्छा तो ये होगा कि मां-बाप स्मोकिंग छोड़ दें."
उन्होंने नेशनल हेल्थ सर्विस को नए अध्ययन का डेटा भेजा है और इस क्षेत्र में अधिक राशि देने की मांग की है.
ब्रिटिश लंग फ़ाउंडेशन के सलाहकार डॉक्टर निक हॉपकिंसन भी इस पर सहमति जताते हैं. वो कहते हैं, "पैसिव स्मोकिंग का असर बचपन के बाद भी रहता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्मोकिंग छुड़ाने वाली सेवाओं की अमरीका में कटौती की जा रही है. यह ज़रूरी है कि सिगरेट की लत वाले हर मां-बाप ख़ासकर गर्भवती मां को इसकी लत छुड़ाने में मदद मिले."
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि सिगरेट पीने वाले मां-बाप के साथ रहने वाले बच्चे को दमा हो सकता है और फेफड़े का विकास प्रभावित हो सकता है.

Thursday, August 30, 2018

भीमा कोरेगांव: संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे जैसों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं?

भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में वामपंथ की ओर रुझान रखने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की देश भर से हुई गिरफ़्तारियों के बाद एक अहम सवाल खड़ा हुआ है. सवाल ये है कि इसी मामले में प्रमुख अभियुक्त संभाजी भिडे के ख़िलाफ़ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है.
पुणे के एसपी (ग्रामीण) संदीप पाटील ने बीबीसी मराठी से बातचीत में कहा कि शिव प्रतिष्ठान के संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ अगले 15-20 दिनों में एक चार्जशीट दायर की जाएगी.
पाटील ने कहा, "दोनों के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दाख़िल करने की तैयारियां चल रही हैं और अगले 15-20 दिनों में यह काम पूरा हो जाएगा."
1 जनवरी, 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के अगले दिन पिंपरी चिंचवाड़ की अनीता सावले ने इस सिलसिले में पिंपरी पुलिस स्टेशन में शिक़ायत दर्ज कराई थी. इस शिक़ायत में संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे को अभियुक्त बनाया गया था.
शिक़ायत दर्ज किए जाने के साढ़े तीन महीने बाद 14 मार्च को मिलिंद एकबोटे को गिरफ़्तार कर लिया गया था. इसके बाद अगले महीने यानी अप्रैल में उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था. वहीं, संभाजी भिडे को इस मामले में अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है.
एसपी संदीप पाटील कहते हैं, "मैं कुछ दिनों पहले ही यहां का एसपी नियुक्त हुआ हैं. मैं कुछ ज़रूरी कागज़ातों को देख लूं, फिर इस बारे में बात कर पाऊंगा."
इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने मार्च, 2018 में कहा था कि भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में संभाजी भिडे के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला है. ये बयान उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा में दिया था.
उन्होंने कहा था, "जिस महिला ने शिक़ायत की अर्ज़ी डाली थी उसने दावा किया था कि उसने संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे को भीमा कोरेगांव में दंगों का नेतृत्व करते देखा था. हमने उसी के मुताबिक शिकायत दर्ज की थी. लेकिन जब मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में महिला ने कहा कि न तो वो संभाजी भिडे गुरुजी को जानती हैं और न ही उन्होंने कभी उन्हें देखा है. मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने बस इतना ही कहा कि उन्होंने ऐसा सुना कि संभाजी भिडे दंगे करा रहे हैं. अब तक पुलिस को ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जिससे साबित हो कि गुरुजी हिंसा में शामिल थे."
बीबीसी मराठी ने जब शिकायतकर्ता अनीता सावले से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि देवेंद्र फड़णवीस ने उनके बयान की ग़लत तरीके से व्याख्या की है.
उन्होंने कहा, "हो सकता है कि मुख्यमंत्री ने एफ़आईआर ठीक से पढ़ी ही न हो. उन्होंने पूरे मामले को ग़लत तरीके से समझ लिया हो. जहां तक संभाजी भिड़े की बात है तो उन्हें पहले ही गिरफ़्तार कर लिया जाना चाहिए था. अगर उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर है और वो संदिग्ध अभियुक्त हैं तो उन्हें गिरफ़्तार करके अदालत में पेश किया जाना चाहिए."
अनीता ने कहा कि उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में संभाजी भिड़े की गिरफ़्तारी के लिए याचिका भी डाली थी. याचिका जून में दायर की गई थी, लेकिन उस पर सुनवाई अब तक शुरू नहीं हुई है.
उन्होंने कहा, "हम पहले दिन से यह सच बताते आए हैं कि यहां जो कुछ भी हुआ उसमें गुरुजी शामिल नहीं थे. जांच एजेंसियां इस पर पिछले आठ महीने से काम कर रही हैं और उन्हें भिड़े गुरुजी के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला है."
चौगुले ने कहा, "अगर जांच एजेंसियां काम नहीं कर रही हैं तो जो लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं, उन्हें सीधे एसेंजियों को सबूत दे देना चाहिए या इन्हें अदालत में पेश करना चाहिए. अगर वो ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें कम से कम मीडिया के सामने सबूत रखने चाहिए और फिर भिड़े गुरुजी की गिरफ़्तारी की मांग करनी चाहिए. जिन माओवादियों के ख़िलाफ़ इस केस के सिलसिले में सबूत मिले हैं उन्हें जांच एजेंसियों ने गिरफ़्तार किया है और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई हो रही है.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पीबी सावंत ने कहा, "यह पुलिस के ऊपर निर्भर करता है कि किसी को गिरफ़्तार किया जाए या नहीं. उन्होंने बाक़ियों को गिरफ़्तार कर लिया है, लेकिन उनकी रणनीति ये है कि चाहे जो हो जाए हिंदुत्व के समर्थकों को गिरफ़्तार नहीं करना है. इन लोगों के ऊपर केस सिर्फ़ इसलिए दर्ज हुआ क्योंकि लोगों की तरफ़ से दबाव था. लेकिन सबूत जुटाने और अदालत में पेश किए जाने में पूरी लापरवाही बरती गई है. बाद में उन्हें बेगुनाह बता दिया जाएगा."
जस्टिस सावंत का कहना है कि हिंदुत्व के समर्थक चाहे जैसे भी आपराधिक काम करें उन्हें इस सरकार के रहते कोई सज़ा नहीं मिलेगी, उन्हें सरकार से सुरक्षा मिली है. संभाजी भिड़े के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी दोस्तान रिश्ते रहे हैं.
मोदी ने रायगढ़ से दिए अपने एक भाषण में कहा था, "मैं भिड़े गुरुजी को कई बरसों से जानता हूं. उनकी सादगी, मेहनत, लक्ष्य के लिए समर्पण और अनुशासन हर किसी के लिए आदर्श हैं. वो एक महान व्यक्ति और साधु हैं. मैं उनके आदेशों का पालन करता हूं. मैं उनके सम्मान में अपना सिर झुकाता हूं."
भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद और भिड़े के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज होने के बाद फ़रवरी, 2018 में पीएम मोदी ने एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें दोनों एक मंच साझा करते नज़र आए थे.

Friday, August 17, 2018

应急管理部成立:中国灾害应­对进入新格局?

今年4月,中华人民共和国应急管理部挂牌成立,这是今年3月全国人民代表大会通过的国务院大规模机构改革方案的一部分。

自2003年“非典”疫情爆发后,政府为改善中国灾害应急管理能力做出了一系列努力,这次备受期待的改革是最新的一次尝试。新部门不仅将为解决国家机构内部现存问题发挥重要作用,还有望提高国家应对灾害及灾后重建的能力,减少生命和财产的损失。

但这也是中国加强减轻灾害风险( )工作的一个契机。DRR是指识别、评估和减少灾害诱因的一套系统化的方法,人员、基础设施和经济受人为和自然灾害影响的风险大小和脆弱程度都在其关注之列。有证据表明, 是控制灾害造成的死亡和损失的一个颇具成本效益的方法,相比侧重灾后应急响应和恢复的方法而言,DRR的成本更低。

而问题是,政府是否能利用好这次机会?

中国的减灾方针

中国了解DRR的好处,并一直致力于加强这方面的工作。例如,2008年汶川大地震发生后,政府曾下大力气,通过落实新的建筑规范,在学校开展大量应急演练,加强地震预警系统等措施。

尽管官方从宣传和政策上都提倡以“预防为主”的方式,但减灾工作一直落后于灾害响应和灾后重建。其中一些原因包括地方和国家缺少资金开展减轻灾害风险的工作,缺少一体化的风险信息存储和共享系统;此外,与灾害管理相比,民间社会对减轻灾害风险(CRR)的认识和协调程度较低。

政府已经意识到了这个问题。就在2016年12月,党和政府联合发布了体制机制改革文件,指出亟需改善当前体制中存在的重救灾轻减灾的问题。中国不注重减轻灾害风险(DRR)主要是因为各部门权责不清,且在灾难管理上常常相互竞争。这两个长期存在、且相互关联的问题阻碍了灾害响应工作,从而促成了新部门的成立。

中国每个政府部门分管着着具体的经济部门或问题,其中也包括与该部门相关的自然和人为灾害的管理。这种僵硬的职责分工在实践中并非全然有效。例如,蔓延到附近森林的草原火灾由林业管理部和农业部两个部门进行管理,同样也需要两个不同的消防单位介入。

在各部委权责出现交叉的时候,这种责任的划分也产生了灰色地带。这样一来会产生很多问题,因为大多数灾害并不能清晰地划入预先确定的类别,而且灾害的影响往往也是广泛而深远的。例如,2008年中国南方遭遇罕见雨雪冰冻灾害,导致一系列相互关联的基础设施无法正常运转;一些发电站崩溃,从而导致铁路关闭,并进而使得煤炭无法运往发电站。

此外,热衷于扩大权力范围的部委经常利用模糊的治理界限参与竞争。这些问题加在一起,导致了信息共享不足、统筹协调困难,投资冗余和资源浪费等问题,阻碍了有效的救灾减灾进程。

新部门的职责

鉴于这些问题,新的“大部门”将接管之前分散在13个部门的灾害管理权力和资源,成为负责应急响应的唯一机构。

关于减灾,新部门有权“处理/明晰防灾和救灾的关系”,并“指导火灾、水旱灾害、地质灾害等防治”。

事实上,除了吸收现有国家减灾委员会(NCDR)之外,该部门已经从各个部门接管了相应的减灾责任。由于缺少实权,国家减灾委员会此前只是名义上领导着各部门的减灾工作。

这项任务并非小事,仅靠机构重组还不足以给中国带来体制上的根本性变革。不过,有几个因素表明新部门还是有机会实现中国的减灾目标的。

首先,该部门可以综合考虑灾害风险间的相互影响,并从长远角度分析这些风险。这对于减灾至关重要,因为这些风险跨部门、学科和系统,而且中国对这些风险的感受也与日俱增。

其次,新部门的人员来自被吸纳的十三个部门。这些人将从不同的领域为新部门带来丰富的经验、观点和人脉,但更重要的是,他们可以充当新部门与之前部门间的有效桥梁。这一点至关重要,因为降低风险必须用到非结构性措施(例如土地使用规划、分区、建筑法规、税收优惠、教育、培训),而非结构性措施仍然属于之前那些部委的权利范围。

最后,新部门将拥有推广和实施减轻灾害风险(DRR)工作的行政权力,因为它吸收了四个部委间协调委员会的权力(国务院抗震救灾指挥部、国家防汛抗旱总指挥部、国家森林防火指挥部、国家减灾委员会)。此前,减轻灾害风险和应急响应协调工作是由这些委员会负责的。

对于负责落实政策的下级政府部门而言,这么做尤其有效。由于部委间委员会的行政级别高于各部门的地方分支机构,因此以部委间协调委员会的名义发布或落实灾害政策更加有效。

目前尚不清楚应急管理部将如何发挥作用。这在很大程度上取决于其内部体制结构及流程、与省和地方政府的关系、在国务院内地位和话语权的高低,以及为其提供技术和研究支持的下属公共服务单位。

尽管存在这些不确定因素,但新部门仍带来了新的希望,希望下一次灾难发生时,中国将做好更充分的准备。现在我们拭目以待,看看这些希望能否实现。

Wednesday, August 15, 2018

为什么北京人不爱电动汽车?

公众眼里的电动车是科技行业的“弄潮儿”,特斯拉、分时租赁汽车、智能驾驶,无不是未科技感十足的高端概念。然而,很少人能想象现实中电动汽车竟然成了车主的“弃儿”。

从2014年北京开始发放电动车指标开始,电动车一直呈现获得指标人多但上牌人少的特征。特别是在2014年的4月,发放了1904个指标,而最后只有286个指标变成了真正的车牌,弃号率竟高达85%。也就是说,大部分获得电动车购买指标的人最终放弃了购买。虽然此现象在两内年随着电动车配套设施的完善以及指标的走俏而逐渐得到缓解,但比起汽油车而言这个数字还是高得惊人。
从弄潮儿到弃儿的落差,源于电动汽车带来的用户体验和效用还远未达到用户的期待。这背后是电动汽车被“揠苗助长”导致的产销能力和配套体验的严重脱节。电动车的整体使用环境不友好导致本来对电动车感兴趣且拿到了指标的潜在买家在权衡利弊以后最终放弃了。消费者宁愿放弃牌照也不愿购买电动车,主要原因可以归结为充电难、体验差、政策不确定性大、价格虚高四大因素。

充电难

一般潜在买家在电动车指标中签后的第一项工作就是考察小区停车位是否可以安装充电桩。然而现实情况是,这第一步就是当头一棒。尽管国家三令五申要求物业配合业主安装充电桩,但许多物业仍以不熟悉政策或安全为由拒绝业主的申请。即便有的物业愿意协调,但涉及到工程、规划、电路等多方面的管理,往往十分费时费劲,甚至有的车主协调了六个月没有解决充电桩安装问题,只能放弃指标。此外,对电动汽车需求最旺盛的工薪阶层也很难负担北京昂贵的私人停车位。虽然公共充电桩正在逐渐增多,然而体验却并不友好。不同的充电桩运营商存在兼容性问题,还不说在公共充电桩充电时面临的长时间排队以及停车缴费问题。北京市发改委曾在2014年
承诺安装1000个公共充电桩,最后却成了一张空头支票。这一系列问题都使得潜在用户对电动车的使用丧失信心。

体验差

电动车本身的使用体验也让购买者们颇为头疼。在电池普遍有限的续航能力下,更没有多余的能源来满足车主的其他用能需求,特别是在夏天和冬天需要开空调的时间段,开电动车的体验变得十分煎熬。例如,为了省电,几乎所有的电动出租车都不敢开空调,即便在北京的严寒里司机师傅也只能忍耐着。对于开惯了汽油车的车主而言,这确实很难接受。电池里程衰减也是一个很大的问题。此外,媒体曾经
报道,在一次北汽电动车试驾活动中,在高速上正常行驶的E150型号电动车的时速突然毫无征兆地从80公里降到40公里,十分危险。

政策多变

电动车行业尚未完全市场化,政策的不确定性对消费者购买行为影响极大。首先,消费者只有购买政府公布的“
电动车推广目录中”的车型才能享受到政策优惠。市场上可供挑选的电动车型本来不多,而能够被收录到政府目录中的车型又更加稀缺了。最让消费者难以理解的是地方政府的电动车推广目录往往另起炉灶,与国家级别的目录不一致,这使得有的消费者因无法购买到心仪的车型而放弃购买。另外,政策的变动频率过快。免征购置税本身是一个利好政策,但政策的突然出台让那些之前购买电动车的消费者感觉吃亏了,在一定程度上反而抑制了后续的购买行为。

价格高

价格虚高也是让中签者放弃的重要原因。首先,虽然电动车有各种国家和政策补贴,然而抛掉补贴以后的电动车价格仍旧比同档次的汽油车高。而随着2017年国家补贴比2016年减少20%,电动车又迎来了一波涨价潮。其次,电动车的运营成本并非真正比汽油车低。尤其是商业充电桩每度电两块多的价格让许多电动车主直呼“开不起”,再加上充电时的停车费、排队和充电的时间成本,电动车并未做到真正省钱。最后,电动车折旧成本很高。就算购买时有价格补贴,可同样使用五六年之后,燃油车残值40%,电动车只剩20%甚至更低。

电动车不应该只靠一件光鲜的外衣来吸引用户,真正提升电动车的品质并增强用户体验的友好性才是治根之本。另外,在单一发展纯电动车效果有限的情况下,天然气汽车、甲醇汽车、氢燃料电池汽车等较成熟的清洁能源技术也应该成为解决中国城市交通污染问题的备选方案。

Wednesday, August 8, 2018

中国与莫桑比克的木材协议有望拯救森林资源

最近,彭朝思和萨拉·罗杰斯分别从不同角度对中国水资源短缺状况和应对措施进行了分析并进行了论辩。争议的焦点在于人均水资源量这个指标的价值以及华北地区水资源的实际状况。我们希望我们的研究能够为这一争论提供另一个视角。

我们对2001年至2015年间的中国水压力(water stress)发展变化进行了追踪,揭示出水压力在全国范围内的空间差异性。我们发现包括“三条红线”的最严格水资源管理制度的建立,有助于减缓甚至扭转水压力的加剧趋势。

由于中国有超过三分之一的土地面临高或极高的水资源压力,中国正努力将日益增长的淡水需求与可用的可再生水资源供应相匹配。政府充分意识到水资源压力可能造成的威胁——经济停滞,水资源依赖型产业的消亡以及资源引起的冲突。

2012年,中国国务院出台了“国务院关于实施最严格的水资源管理制度的意见”,以应对日益严峻的水资源挑战。这份通常被称为“三条红线”的文件的主要目标包括:1)到2030年全国用水总量控制在7000亿立方米以内;2)到2030年用水效率达到或接近世界先进水平,体现为万元工业增加值用水量和农田灌溉水有效利用系数两个指标;3)到2030年主要污染物入河湖总量控制在水功能区纳污能力范围之内。在中央政府发布文件之后,地方政府相应制定了自己更详细的目标。­­

这“三条红线”是否改善了中国的用水安全? 世界资源研究所利用三年(2001年,2010年和2015年)的用水数据对全国基准水压力进行了分析。基准水压力被定义为年度总用水量(生活,工业和农业)占年度可用地表水总量的百分比。数值越高,用户之间的竞争越激烈——数值高于40%被认为是“高水资源压力”,数值高于80%为“极高”。2001年到2015年,水资源压力的整体模式一直保持一致:中国北方比中国南方的缺水压力更大。与2010年相比,随着“三条红线”的实施,2015年中国面临高水压力地区的总面积几乎没有发生变化。

2010-2015年,居住在高压水压力地区的人口增加了3%。与2001-2010年相比,黄河上游和长江上游地区的水资源压力有所减轻,而黄河下游地区的水资源压力加剧。  水资源压力加剧的程度在减缓:尽管因为各部门的用水需求增加导致中国的水资源压力在2001年至2010年期间加剧,但2015年的水资源压力地图显示,这一情况在许多地区开始有所改善。在2010-2015年期间,高水资源压力的地区的面积增加减缓。这五年期间水资源压力加剧的地区总面积仅为前十年(2001-2010年)的35更多地区的水资源压力得到改善年水资源压力得到缓和的地区总面积是2010-2010年的间总面积的10倍。