Friday, August 31, 2018

वक़्त पर पीरियड्स के लिए क्या खाएं क्या न खाएं

महिलाओं के शरीर में हार्मोनल परिवर्तन का उनके खान-पान से सीधा संबंध होता है. एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं के आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज़्यादा है तो पीरियड्स वक़्त से पहले आ सकता है.
जो महिलाएं ज़्यादा पास्ता और चावल खाती हैं, उन्हें एक से डेढ़ साल पहले पीरियड्स आना शुरू हो जाता है.
हालांकि यूनिवर्सटी ऑफ लीड्स ने ब्रिटेन की 914 महिलाओं पर एक स्टडी की थी और उसमें यह बात सामने आई थी कि जो महिलाएं मछली, मटर और बीन्स का सेवन ज़्यादा करती हैं उनके मासिक धर्म में सामान्य रूप से देरी होती है.
हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि पीरियड्स का वक़्त से पहले या बाद में आना केवल खान-पान पर ही नहीं, बल्कि कई चीज़ों पर निर्भर करता है. इ
यह स्टडी जर्नल ऑफ एपिडिमीलॉजी एंड कम्युनिटी हेल्थ में छपी है. इस स्टडी में महिलाओं से उनके खान-पान के बारे में सवाल पूछे गए हैं. जो महिलाएं फलीदार सब्ज़ियां ज़्यादा खाती थीं, उनके पीरियड्स में देरी देखी गई.
ये देरी एक से डेढ़ साल के बीच की थी. दूसरी तरफ़ जिन महिलाओं ने ज़्यादा कार्बोहाइट्रेड वाला आहार लिया, उन्हें एक से डेढ़ साल पहले ही पीरियड्स का सामना करना पड़ा.
शोधकर्ताओं ने खान-पान के अलावा दूसरे प्रभावों का भी ज़िक्र किया है. इसमें महिलाओं का वजन, प्रजनन क्षमता और एचआरटी हार्मोन अहम हैं.
हालांकि इन्हें अनुवांशिक कारण माने जाते हैं और इसका पीरियड्स पर सीधा असर होता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि फलीदार सब्ज़ियां एंटिऑक्सिडेंट होती हैं और इससे पीरियड्स में देरी होती है.
ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है और ये केवल मछली के तेल में होता है. इससे भी शरीर में एंटिऑक्सिडेंट बढ़ता है. दूसरी तरफ़ कार्बोहाइड्रेट इंसुलिन प्रतिरोधक के ख़तरे को बढ़ाता है.
इससे सेक्स हार्मोन भी प्रभावित होता है, एस्ट्रोजन बढ़ता है. ऐसी स्थिति में पीरियड्स का चक्र प्रभावित होता है और वक़्त से पहले आने की संभावना रहती है.
इस स्टडी के शोधकर्ता जेनेट कैड का कहना है कि पीरियड्स की उम्र से महिलाओं की सेहत सीधी जुड़ी होती है.
जिन महिलाओं को पीरियड्स वक़्त से पहले होता है, उनमें दिल और हड्डी की बीमारी की आशंका बनी रहती है. दूसरी तरफ़ जिन महिलाओं को पीरियड्स देरी से आता है, उनमें स्तन और गर्भाशय के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है.
गोभी, हरी साग, हल्दी, नारियल के तेल जैसी खाद्य सामग्रियों को महिलाओं के अंडाणु की गुणवत्ता से जोड़ा जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इन्हें खाने से अंडाणु की गुणवत्ता सुधर जाती है.
अंडाणु की गुणवत्ता का सीधा संबंध अनुवांशिकी होता है.
समें जीन का भी प्रभाव होता है.
आप अपने घर में बच्चों और सिगरेट दोनों से एक साथ प्यार नहीं कर सकते हैं. अगर भला चाहते हैं तो दोनों में से किसी एक को छोड़ना पड़ेगा.
अमरीका के एक शोध में पता चला है कि अगर बच्चे सिगरेट पीने की लत के शिकार मां-बाप के साथ बड़े होते हैं तो उन्हें फेफड़े की जानलेवा बीमारी हो सकती है.
ये बीमारी पैसिव स्मोकिंग की वजह से उन्हें हो सकती है. पैसिव स्मोकिंग यानी जब एक शख़्स सिगरेट पी रहा होता है तो उसके आसपास के लोगों को अनायास ही धुआं लेना पड़ता है.
शोधकार्ताओं का कहना है कि सिगरेट न पीने वाले प्रति एक लाख वयस्कों की मौत में सात और मौतें जुड़ जाती हैं जो पैसिव स्मोकिंग के कारण होती हैं.
अमरीका कैंसर सोसाइटी के अध्ययन में 70,900 सिगरेट न पीने वाले पुरुष और महिलाओं को शामिल किया गया था जिनके मां-बाप सिगरेट पीते थे.
विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर तरीक़ा यह होगा कि मां-बाप अपने बच्चों के लिए सिगरेट छोड़ दें.
अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे स्मोकिंग की लत के शिकार मां-बाप के साथ बड़े होते हैं उन्हें दूसरी तरह की भी बीमारियां हो सकती हैं.
बच्चा अगर सप्ताह में 10 या उससे ज़्यादा घंटे सिगरेट के धुएं के साए में होता है तो उसे दिल की बीमारी होने की आशंका 27 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है. वहीं मस्तिष्क आघात की आशंका 23 फ़ीसदी और फेफड़े की जानलेवा बीमारी होने का जोख़िम 42 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है.
यह तुलना उन बच्चों से की गई है जो सिगरेट नहीं पीने वाले मां-बाप के साथ रहते हैं. इस अध्ययन को अमरीकन जर्नल ऑफ़ प्रिवेंटिव मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है.
अध्ययन में शामिल 70,900 लोगों से वैसे वक़्त का हिसाब-किताब लिया गया जब वो अपने मां-बाप के सिगरेट के धुएं के बीच थे. अगले 22 सालों तक उनके स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया.
स्मोकिंग के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाली हेज़ल चेसमैन ने कहा, "यह नया अध्ययन अभियान में शामिल किया गया है और बताता है कि बच्चों की ख़ातिर लोगों को घर के बाहर स्मोकिंग करना चाहिए. अच्छा तो ये होगा कि मां-बाप स्मोकिंग छोड़ दें."
उन्होंने नेशनल हेल्थ सर्विस को नए अध्ययन का डेटा भेजा है और इस क्षेत्र में अधिक राशि देने की मांग की है.
ब्रिटिश लंग फ़ाउंडेशन के सलाहकार डॉक्टर निक हॉपकिंसन भी इस पर सहमति जताते हैं. वो कहते हैं, "पैसिव स्मोकिंग का असर बचपन के बाद भी रहता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्मोकिंग छुड़ाने वाली सेवाओं की अमरीका में कटौती की जा रही है. यह ज़रूरी है कि सिगरेट की लत वाले हर मां-बाप ख़ासकर गर्भवती मां को इसकी लत छुड़ाने में मदद मिले."
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि सिगरेट पीने वाले मां-बाप के साथ रहने वाले बच्चे को दमा हो सकता है और फेफड़े का विकास प्रभावित हो सकता है.

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